https://www.facebook.com/foodscienceravi मानव का खान पान: अप्रैल 2019

रविवार, 28 अप्रैल 2019

खाघ विषाक्ता क्या होती है और इसका मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है

संतुलित तथा पौष्टिक आहार या खाघ जीव विष से विषाक्त हो जाता है, जो शरीर के लिए हानिकारक होता है। विषाक्त खाद्ध पदार्थ खाने से मृत्यू तक शरीर के लिए हानिकारक होता है। विषाक्त खाध पदार्थ खाध खाने से मृत्यू तक संभावित होती है जैसे कच्ची मूंमफली को यदि नमी वाले स्थान पर स्टोर करें तो उसमें फफूंदी उत्पन्न हो जाती है अकार्वनिक रसायन विषाक्ता से ही खाघ पदार्थ दूषित हो जाता है जो शरीर के लिए हानिकारक होता है     जैसे   टिन के डिब्बो में संरक्षित खाध पदार्थ फल मुरब्बे  और मछली में रासायनिक क्रिया होती है जो खाध पदार्थ को विषाक्त कर देती है।

खाध विषैला होने का कारण

खाध पदार्थ विषाक्त होने के कई कारण हो सकते है
कुछ बाहरी प्रभाव के कारण भी विषाक्त हो जाते है
तीव्र विष 

  • जैसे पोटैशियम सायनाइड कार्वन मोनो आँक्साइड. इनके सेवन से तत्काल मृत्यु हो जाती है
  • विषैले खाध पदार्थ जिनके सेवन से मानव वेहोश हो जाता है।
  • तीव्र अम्लों, क्षारों संखिया और तम्बाकू आदि के सेवन से मानव के हृदय पर भी प्रभाव पड़ता है
  • शुक्राणु द्वारा खाध का विषैला होना
  •   खाघ पदार्थो के सेवन से ही विषाक्ता के प्रभाव शरीर पर दिखाई देने लगते है  कुछ लोगो उल्टी आना या कमर से नीचे के भाग में पीड़ा होने लगती है  ये सभी लक्षण मानव शरीर में दिखाई देने लगते है

कुछ विषैले भोजन में कुछ अन्तः कारण भी होते है
जहरीले वनस्पति खाने से भी या पकाने से भोजन में विषाक्ता के गुण आ जाते है
जैसे कुकरमुत्ता पालक।
कुकरमुत्ता को खुम्भी भी कहते है। यह विषैला होता है

धोंधा जाति की मछली से भी विषाक्ता हो जाती है क्योकि यह अपने खाध्य पदार्थो के रूप में सडे गले जीव और मरे पशुओ को खाती है  इस प्रकार की मछली खाने से हमारे शरीर के अमाशय के भाग पर बहुत असर होता है



विषाक्ता के लक्षण   दस्त लगना और उल्टी होना नीद आना इत्यादि इस प्रकार के लक्षण प्रतीत होते है
   रोकथाम   विषाक्त मछली को न खाये और बडी मछली को न खाये और बासी मछली को न खाये

आलू  
आलू मे सैलेनिन नाम का विषाक्त पाया जाता है यह आलू के हरे भाग में होता है आलू में अंकुर निकल आते है उस में सैलिनिन नामक विष मिलताहै

क्लोरेसिस    क्लोरीन वाले जल में जो सब्जिया उगायी जाती है उनमें भी विषाक्ता के गुण दिखाई देते है
लक्षण   दस्त लगना , उल्टी आना
रोकथाम    चूना और फिटकरी जल के वर्तन में डाल देने से बर्तन के तलछठ में विषैला पदार्थ नीचे बैठ जाता है। शुद्ध जल को उस बर्तन से निथार लिया जाता है


विषैली वनस्पति   जिस प्रकार आगे भी बता चुके है कि कुछ वनस्पतियों में भी विष पाया जाता है जैसे कि सियाल काटा वनस्पति है जिसे सरसों के साथ मिलाकार तेल निकालते है। सियाल काटा के कारण तेल का रंग लाला हो जाता है जो हानिकारक होता है सियाल काटा के कारण तेल भी लाल रंग का हो जता है जो हानिकारक है 
सियाल काटा में उत्पन्न विष का परीक्षण में नाइट्रिक एसिड टेस्ट द्नारा विष का बंगाल के निवासी अधिक सिकार होते है

लक्षण   ऐडी से लेकर धुटने तक सूजन आ जाती है और बुखार आने लगता है वुखार 90 से 101 F तक हो सकता है ब्लड प्रेशर भी लाँ हो जाता है और श्वास लेने में भी परेशानी होती है चेहेरे पर भी धब्बे पड़ने लगते है
रोकथाम   शुद्ध तेल का सेवन करना चाहिए


खेसारी दाल
यह मटर की फली की तरह होती है इसमें विषैले तत्व के रूप में लेथाइरिज्म नामक बीमारी हो जाती है। 

लक्षण पैर में दर्द  के साथ साथ पैर में शून्यता और उनमें शक्ति का कमजीर होना प्रमुख है

गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

किशोरावस्था में आहार

बाल्यावस्था समाप्त कर बालक कब किशोरवस्था में प्रवेश कर जाता है, इसका तिनक भी एसहसास नही हो पाता है। इसका पता केवल तब लगता है जब बालक में इस अवस्था के अन्दर होने वाले महत्वपूर्ण बदलाव देखने होने लगते है
किशोरावस्था में 12 वर्ष से 18 वर्ष की आयु के बालक बालिकाएँ आते हैं। हालांकि बालिकाओं में किशोरावस्था का आभास 12 साल की आयु से पहले शुरु हो जाता है और 14 साल की आयु तक पूर्ण आभास हो जाता है जबकि बालकों में यह महत्वपूर्ण परिवर्तन 16 से 18 वर्ष की आयु तक होते रहते है।


शैशवास्था के बाद किशोरावस्था ही ऐसी अवस्था है जिसमें बालक का शारीरिक मानसिक सामाजिक क्रियात्मक संवेगात्मक विकास सामान्य से बहुुत अधिक होता है
शारीरिक विकास के अन्तर्गत अस्थियों एवं माँसपेशियों का बढ़ना बालक की लम्बाई में त्वरित बृद्धि आदि।
सामाजिक विकास किशोरावस्था मे बालक सामाजिक रीतिरिवाजों को समझना शुरु कर देता है और उसी के अनुसार वह समाज में रहतकर अपना विकास करता है।


किशोरावस्था के लिए पोषक त्त्वों की आवश्यकता
1 ऊर्जा इस अवस्था में ऊर्जा की मात्रा किशोर एवं किशोरियों की क्रियाशीलता लम्बाई एवं शारीरिक भार पर निर्भर करती है।
किशोरों की अपेक्षा किशोरियों को कम ऊर्जा की अवश्यकता होती है क्योकि किशोरियों का शारीरिक भार तथा लम्बाई किशोरो की तुलना में कम होती है

किशोरो को ऊर्जा की आवश्यकता 50 कैलोरी प्रति किलोग्राम
किशोरियों के लिए ऊर्जा की आवश्यकता 35 कैलोरी प्रति किलोग्राम
प्रोटीन किशोरावस्था में शारीरिक विकास एवं मानसिक विकास बहुत तेजी से होता है इसलिए अस्थियो और मासपेशियों के लिए ऊर्जा की पूर्ति के लिए प्रोटीन की आवश्यकता होती है
किशोरो को प्रति दिन 70-78 ग्राम प्रोटीन
किशोरियों के लिए 65-73 ग्राम
खनिज लवण किशोरियो के लिए इस अवस्था में कैल्शियम की बहुत अधिक आवश्यकता होती है क्योकि यह वह अवस्था होती हो जब अस्थियाँ तीव्र गति से बृद्धि करती है
लौह लवण किशोरियों को प्रतिदिन 28 से 30 मिली ग्राम
किशोरो को 41 से 50 मिली ग्राम




बुधवार, 24 अप्रैल 2019

आहार तथा स्वास्थ्य में घनिष्ठ सम्बन्ध है सन्तुलित भोजन मनुष्य के स्वास्थ्य को लिए नही बल्कि रोगों से बचाये रखने व रोगावस्था में उपचार को शीघ्रता प्रदान करने के लिए भी आवश्यक है विभिन्न रोगों में अलग अलग प्रकार व मात्रा में आहार की आवश्यकता होती है। कुछ स्थितियों में सामान्य आहार मात्रा में परिवर्तन करके रोगी को दिया जा सकता है, पर कुछ स्थितियों में रोगी के लिए आहार का रूप ही बदलना पड़ता है क्योंकि सामान्य आहार उसकी पाचन क्षमता के अनुरूप नही होता ै। कुछ रोगों में पोषक तत्व भोजन से पूर्ण रूप से निकालने होते हैं जबकि कुछ रोगों में आहार में पोषक तत्त सम्मिलित किये जाते हैं उदाहरण कम भारिता वाले व्यक्ति को अधिक कैलोरी तथा अधिक प्रोटीन आवश्यक होती है जबकि अधिक भारिता वाले व्यक्ति को कम कैलोरी तथा अधिक प्रोटीन युक्त आहार लेना आवश्यक होता है।